शाहीनबाग की सोच का पर्दाफाश .......डॉ रवि प्रभात - Hind Patrika
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शाहीनबाग की सोच का पर्दाफाश .......डॉ रवि प्रभात

विश्व कोरोना वायरस जैसी महामारी के संक्रमण से गुजर रहा है । विकसित देश भी इस संक्रमण की चपेट में है और अभी तक इसका कोई सटीक उपचार भी नहीं खोजा जा सका है । तमाम वैज्ञानिक इस की पुरजोर कोशिश कर रहे  हैं लेकिन यह एक निश्चित समय लगने वाली प्रक्रिया है।  यह वायरस चीन से शुरू हुआ , चीन में इस वायरस से होने वाली तबाही का मंजर हम सभी ने देखा । 3000 से ज्यादा लोग काल का ग्रास बने परंतु अब चीन में पिछले 3 दिनों से कोरोना का नया मामला सामने नहीं आया है । इसी तरह पूरा यूरोप खासतौर पर इटली बेहद बुरे हालात का सामना कर रहा है , ईरान  और अमेरिका भी इससे अछूते  नहीं हैं। लेकिन इस बीच कई देशों ने अपनी सूझबूझ से कोरोना को मात भी दी है साउथ कोरिया , सिंगापुर और ताइवान जैसे देश इसके साक्षात उदाहरण हैं । 
इस बीच बेहद चिंताजनक बात यह है कि पिछले कुछ दिनों में भारत पर भी कोरोना का खतरा मंडरा रहा है , अभी तक भारत सरकार ने अपनी समझ बूझ एवं युद्ध स्तर पर किये प्रयासों से कोरोना के संकट को टाल रखा है लेकिन जैसे-जैसे संक्रमित देशों से लोग लौट रहे हैं वैसे वैसे पिछले कुछ दिनों में कोरोना संक्रमण के केस भारत में भी तेजी से बढ़े हैं और अब हम कोरोना संक्रमण के नाजुक दौर में पहुंच चुके हैं। मोदी सरकार एवं तमाम राज्य सरकारों ने अपनी तरफ से कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए तमाम उपाय किए हैं लेकिन कोरोना संक्रमण के फैलने का तरीका इस प्रकार का है कि केवल सरकारें अपने बलबूते इसे नहीं रोक सकती इसमें जनता की भी बड़ी भूमिका है । अगर सरकारी तंत्र के बूते की बात होती तो विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्था इटली और चीन जैसे देश इसे काबू कर चुके होते ।
विशेषज्ञों का साफ तौर पर मानना है कि कोरोना का  संक्रमण संक्रमित व्यक्तियों से बाकी लोगों में फैलता है, कोरोना संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क में आने वाला व्यक्ति अथवा कोरोना संक्रमित व्यक्ति द्वारा स्पर्श की गई वस्तुओं को दूसरे लोगों द्वारा छूने पर कोरोना का संक्रमण तेजी से फैलता है , भीड़भाड़ वाले स्थानों पर कोरोना के फैलने का खतरा सबसे ज्यादा है । सरकार ने इन सभी चीजों को ध्यान में रखकर पिछले दिनों सभी सरकारी संस्थानों , स्कूलों, कॉलेजों और कार्यालयों को बंद कर दिया है ।
प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस अवसर पर देश को संबोधित किया तथा अपने संबोधन में यही संदेश दिया कि लोग भीड़ इकट्ठी करने से बचें  , साथ ही प्रधानमंत्री ने 22 मार्च  रविवार के दिन जनता कर्फ्यू का भी आह्वान किया जिसमें सभी लोग स्वेच्छा से अपने अपने घरों में रहेंगे और कोई भी बाहर नहीं निकलेगा । दरअसल कोरोना के  संक्रमण को रोकने की वैज्ञानिक विधि भी यही है कि लोग एकांतवास में रहे , घरों से बाहर ना निकले , आपसी मेलजोल कुछ दिन तक रोक दें , किसी स्थान पर एकत्रित ना हो जिससे इस खतरनाक तरीके से फैलने वाले संक्रमण से बचा जा सके।
 चीन ने भी अपने आप को संक्रमण से बचाने के लिए पूरे वुहान एवं हुबेई प्रांत के लोगों को घरों में बंद किया और उसके बाद इस संक्रमण को वहां पर रोका जा सका ।
कोरोना से देश को बचाने के लिए पूरे देश को एकजुट होकर  संयम और अनुशासन के साथ अधिकृत संस्थाओं,  अधिकारियों एवं प्रधानमंत्री के निर्देशों का पालन निष्ठा एवं ईमानदारी से करना पड़ेगा ।
प्रधानमंत्री द्वारा आहूत जनता कर्फ्यू का पूरे देश ने एक स्वर में समर्थन किया है और पूरे देश से मीडिया के माध्यम से जो खबरें आ रही हैं उनसे यह स्पष्ट है कि देश ने अपने जन नेता के आह्वान को गंभीरता से लिया है और सभी लोग स्वयं प्रेरणा से इस जनता कर्फ्यू का हिस्सा बन रहे हैं परंतु आज भी देश में एक तबका ऐसा है जो कोरोना के इस संक्रमण को गंभीरता से ना लेकर पूरे देश के लिए ही नहीं अपितु मानवता के लिए संकट खड़ा कर रहा है वह भी जानबूझकर । शाहीनबाग इसी सोच का प्रतिनिधि है।
मीडिया एवं सरकार द्वारा तमाम जन जागरण एवं दिशा निर्देशों के बीच पूरा देश जब जनता कर्फ्यू का स्वेच्छा से पालन कर रहा है तब भी शाहीन बाग में इस्लामिक कट्टरपंथ की विचारधारा से इत्तेफाक रखने वाले मुस्लिम आज भी सड़कों पर हैं, उनकी दॄष्टि  में कोरोना एक बहम है , शिगूफा है, अफवाह है और उन्हें हर हालत में मोदी विरोध में इस नाजुक हालात में सड़क पर भीड़ इकट्ठी करनी है ।
दरअसल कोरोना के आपातकाल में शाहीन बाग के तथाकथित आंदोलनकारी अथवा अराजकतावादी कहना ज्यादा उचित होगा एवं उनके समर्थक पूरी तरह से एक्सपोज हो चुके हैं जिससे कि अब यह लोग जनता की सहानुभूति पूरी तरह से खो चुके है। अभी पिछले दिनों गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कुछ बातें साफ की थी जिसका कांग्रेस जैसे शाहीनबाग समर्थक दल ने भी अनुमोदन किया था। अमित शाह ने कहा था कि नागरिकता कानून किसी की भी नागरिकता छीनने के लिए नहीं है इसका कपिल सिब्बल ने खुद राज्यसभा में उठकर अनुमोदन करते हुए सहमति जताई थी। साथ ही अमित शाह ने कहा था कि एनपीआर में किसी के भी नाम के सामने D( संदेहास्पद)  नहीं लिखा जाएगा ना ही प्रमाण पत्र मांगे जाएंगे, इस पर विपक्ष ने हामी भरी थी ।तीसरी बात गृह मंत्री ने  कही थी। कि अभी एनआरसी पर कोई चर्चा नहीं हुई है ।
ध्यातव्य है कि इन्हीं तीन मुद्दों पर शाहीन बाग एवं पूरे देश के मुस्लिम लोगों ने सड़कों पर कब्जा कर पूरे देश के लिए सरदर्दी पैदा की हुई है ।
संसद में अमित शाह के बयान के बाद भी इन लोगों का अड़ियल रवैया संकेत देता है कि इनका यह वीभत्स आंदोलन जिसमें अनेक लोगों की जान सड़कें जाम  और दंगा होने की वजह से जा चुकी है वह अतार्किक तो है ही  साथ ही उसका मकसद देश को अस्थिर करना भी  है ।
यदि स्थिति सामान्य होती तो भी इनके इस गैर जिम्मेदाराना रवैये पर कोई सम्मति हो सकती थी परंतु जब देश कोरोना के भयावह संक्रमण काल से गुजर रहा है तब भी इस तरह सड़कों पर कब्जा करके बैठना और नियमित भीड़ इकट्ठी करना , यह एक आत्मघाती तरीका है जो पूरे समाज एवं देश को संकट में डाल सकता है । ऐसी निंदनीय गतिविधि इन लोगों के वास्तविक चेहरे को उजागर कर रही है जो न केवल देश विरोधी है अपितु समग्र मानवता विरोधी भी है।
 शाहीन बाग के लोगों ने पहले दिन से अलोकतांत्रिक रवैया अपनाया लेकिन उनसे सहानुभूति रखने वाले मीडिया, राजनीतिक पार्टियां एवं कुछ प्रगतिशील तथाकथित विचारकों ने इन्हें गुमराह भीड़ कहकर उनका बचाव किया  एवं  उनके लिए  लगातार सहानुभूति बटोरने की कोशिश ये लोग करते रहे , लेकिन क्या ऐसे लोग अब बता पाएंगे कि क्या कोरोना का संक्रमण भी एक अफवाह है और इन लोगों को वहां से हटने के लिए बोलना उन्हें गुमराह करना है। शाहीन बाग में बैठे लोगों के मंसूबे इतने खतरनाक हैं कि यह लोग खुद को तो कोरोनाप्रूफ़ होने की बात कहते हैं साथ ही देश के प्रधानमंत्री एवं उनकी पार्टी को कोरोना से संक्रमित हो जाने की दुआ भी करते दिखाई देते हैं।
 दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने पहले 50 और 20 से ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने की मनाही की है  इस आशय की घोषणा का अनुपालन प्रत्येक आम व्यक्ति कर रहा है लेकिन शाहीनबाग  के लोग अपने चुने हुए प्रिय मुख्यमंत्री की बात को भी अपनी धर्मांधता और अराजकतावादी सोच के चलते कोई तवज्जो नहीं दे रहे । इसी तरह का उदाहरण तमाम मस्जिदों में भी जुमे की नमाज में भीड़ इकट्ठी करके प्रस्तुत किया है जबकि सभी चर्च एवं मंदिर भीड़ इकट्ठा ना हो इसके लिए प्रयास कर रहे हैं , कुछ बंद कर दिए गए हैं बाकी सब दिशानिर्देशों का पालन भी कर रहे हैं।
गौरतलब है कि शाहीन बाग का  एक प्रदर्शनकारी भी कोरोना  की चपेट में आ चुका है जिसकी पुष्टि  भी हो चुकी है । इससे समझा जा सकता है कि शाहीन बाग की यह धर्मांध जिद किस कदर देश को खतरे में डाल सकती है।
 वस्तुतः इस पूरे प्रकरण से कुछ चीजें बेहद स्पष्ट तौर पर उभरी हैं , शाहीन बाग या इस तरह के प्रदर्शन किसी अफवाह , अज्ञान या भ्रम के चलते नहीं किए जा रहे यह सभी सोची-समझी रणनीति के तहत किए जा रहे हैं जिसमें निहित उद्देश्य विशुद्ध राजनीतिक एवं धार्मिक है। आरंभ में यह प्रदर्शन मोदी सरकार के विरोध में शुरू हुए लेकिन धीरे-धीरे यह प्रदर्शन देश विरोध में तब्दील होते गए अन्यथा इन प्रदर्शनों से जिन्ना की आजादी और चिकन नेक को देश से काटने जैसी बातें नहीं निकलती। कोरोना के चलते इन लोगों का देश विरोधी चेहरा तो उजागर हुआ ही है मानवता विरोधी चेहरा भी उजागर हो चुका है।
 गृह मंत्री के आश्वासन के बाद अब जब किसी प्रकार के भ्रम की गुंजाइश नहीं है तब भी उस अज्ञात भय की आड़ लेकर पूरे देश को संकट में डालने की मंशा यह दिखा रही है कि जब भी देश को आवश्यकता होगी इस तरह के तत्व कभी भी देश के साथ खड़े खड़े होना पसंद नहीं करेंगे और हमेशा अपनी धर्मांध महत्वाकांक्षा की पूर्ति में ही लगे रहेंगे ।इतिहास में यह बात हमेशा के लिए अंकित हो गई है कि जब देश कोरोना की भयानक संक्रमण से लड़ रहा था तब कुछ धर्मांध लोग अपनी जिद में पूरे देश और मानवता को शर्मसार कर कोरोना के खतरे को बढ़ाने में अपना योगदान दे रहे थे ।
इसीलिए चाणक्य ने कहा था "आपत्सु मित्रं जानीयात" अर्थात मित्रों की समझ आपत्तिकाल में होती है कि कौन साथ देता है । शाहीन बाग ने जनता कर्फ्यू और सरकार के कोरोना संक्रमण के दिशा निर्देशों को दरकिनार कर यह जता दिया है कि वह देश के मित्र तो नहीं है बाकी क्या है यह समझने के लिए पाठक स्वतंत्र हैं।

                                              डॉ रवि प्रभात
                                             असिस्टेंट प्रोफेसर
                                महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक
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1 Comments

  1. शानदार विश्लेषण रवि प्रभात जी

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